Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) २७५

३८. ।श्री राम राइ नेमोइआ बज़करा जिवाया॥
३७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>३९
दोहरा: दिज़ली पुरि परवेश कै, नदन श्री हरिराइ।
करो सिवर सुभ रीति सोण, रहि मजळ१ जिस थाइ ॥१॥
चौपई: तुरकेशुर बहु रिदे बिचारे।
अपनि सलाही सकल हकारे।
अग़मत देनहार अबि आयो।
आप नहीण, निज पुज़त्र पठायो ॥२॥
हम सोण बिना मिले इक वारी।
करामात कुछ देहि दिखारी।
हुइ अति कठन जु बन नहि आवै।
दिहु सलाह अति हीनति२ पावै ॥३॥
का कहि पठहि, कहां करिवाइ?
जिस महि किम नहि चलहि अुपाइ।
मिलिबे ते पूरब पतिआवैण।
लखहि अुचित तबि निकटि बुलावैण ॥४॥
सुनि काग़ी मुज़लां हरखाए।
शाह सराहहि बाक सुनाए।
दानशवंद बिलद सभिनि मैण।
कहि पठवहु जिम रुचि हुइ मन मैण ॥५॥
अशटि सिधि होवति जिन मांही।
लघु दीरघ आदिक बन जाहीण।
अपर अनेक प्रकारनि बात।
सो करि लेति जगत बज़खात ॥६॥
अचरज को दिखाइ बिधि नाना।
जो बुधि बल ते सकै न जाना।
सभि ते अुलघि एकरै बात।
म्रितक जिवावनि की बज़खात ॥७॥
इस महि एक करहु चतुराई।
जिस प्रकार हम कहैण बुझाई।


१भाव मजळ दे टिज़ले, गुरदुआरा है जमना किनारे। जिथे आदि तोण छेवेण पातशाह टिके सन।
२हींता।

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