Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) २७७२९. ।तंबाकू॥
२८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>३०
दोहरा: इस प्रकार कहि सतिगुरू, सदन प्रवेशे जाइ।
बहुर सभा महि थिर भए, मिले सिज़ख समुदाइ ॥१॥
*भलक१ भयो सतिगुर सभा, सिख संगति की भीर।
हाथ जोरि सतिगुर पुछे२, सुलतानी+ सिख बीर ॥२॥
दोइ भ्रात को अुमगता, खज़त्री तन सुलतान३+।
पाड़े संगत सुवन दो, कहैण तमाकू कान४? ॥३॥
श्री++ सतिगुर बोलति भए, मेरी बात प्रतीत।
सकंध संघता शिव कही, कथा भविज़खत रीत५ ॥४॥
सकंध पुछा -हे पिता जी! जगत जूठ का निद६?
कलिजुग कैसे वरतीए, इहु किन कीन मुनिद७-? ॥५॥
शिव कहिना -सुन पूति हित८
जाण की चरचा आहि९।
अघ मरखं ते शुज़ध मन
छुहे गंग जल नाइ१० ॥६॥
खावति जपु तपु नाश हुइ,


*इथोण सौ साखी दी ९१वीण साखी चज़ली।
१(दूजे) सवेर।
२गुराण पासोण पुछिआ।
+सौ साखी दा पा: है मुलतानी, ते मुलतान जो सही जापदा है।
३दोहां भरावाण ळ (प्रेम) अुमगिआ, खज़त्री(जनम) सी, पर सुलतानीए सन।
४संगत विच इह दोवेण लड़के पड़्हे होए सन। (अ) संगत (नामे सिख दे) दो पुज़त्र पाड़्हे (जात) ते
सुलतानीए सन (अुन्हां पुछिआ) तंमाकू दे वासते या बाबत (कि किअुण मन्हा करदे हो?)
++पा:-तब।
सौ सा: दा पाठ संकद संघिता है, जो शुज़ध पाठ है।
५पेशीन गोई दी सूरत विच शिव ने कही है, कि जोसकंद संहिता विच है। सकंद नाम शिव दे
पुज़त्र कारतकेय दा है जिस ळ कथा कही गई दज़स रहे हन, इस करके पाठ सकंद ठीक है।
६सकंद ने (शिव जी ळ) पुछिआ है पिता जी तमाकू किअुण निदन योग है?
७कलजुग विच किवेण वरत गिआ (है इक तमाकू) ते किस मुनी राज ने इस ळ पैदा कीता है?
८पारे! (अ) हित नाल सुण।
९जिस दी चरचा हो रही है भाव तमाकू।
१०तमाकू (याद कीतिआण) मन दी शुधी अघ मरखन पाठ नाल हुंदी है ते तमाकू छुहिआण गंगा जल
ाल न्हातिआण (शरीर) शुधी हुंदी है।
।अघ मरखं=रिगवेद दा इक मंत्र जो जल हथ विच लै के नासां ळ छुहाके पड़्हदे हन ते
जल देणदे हन इस नाल पाप दूर होए समझदे हन। सं:, अघ+मरण॥।

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