Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २८१

मंगल करि जै शबद सुनाए।
गोरख आदि सिज़ध समुदाई१।
आइ सभिनि कीनसि बडिआई ॥२८॥
जै जै कार सुरग महिण भयो।
अति अुतसाह देवतनि कयो।
धंन धंन सतिगुरू बखानैण।
आइ अगाअू आदर ठानैण ॥२९॥कलप ब्रिज़छ फूलन की माला।
पहिरावहिण गुर गरे बिसाला।
पुशपांजल२ छोरति बरखावैण।
बड सुगंधि चंदन चरचावैण ॥३०॥
इज़तादिक अरपहिण अर गावैण।
देवबधू नाचति हरिखावैण।
गुर आगवन सुरग अुतसाहू।
कहिण लग कहो जु भयो अुमाहू ॥३१॥
इत३ श्री अमर सिज़ख जे सारे।
आइसु ते अुर शोक निवारे।
सभि मिलि करहिण कीरतन चारु।
अूचे अुचरहिण जै जै कार ॥३२॥
पुन बिबान नीको* बनवाइव।
माल बिसाल पुशप लरकाइव४।
सुंदर बसत्र लाइ दिश चार।
मिलि बहुतनि शुभ रीति सुधारि ॥३३॥
सतिगुर तन करिवाइ शनान।
बर अंबर५ अूपर को तान।
बीच बिबान बहुर पौढाए।
बुज़ढे आदि सु लीनि अुठाए ॥३४॥


१सारे।
२फुज़लां दे बुक।
३इधर।
*पा:-कीनो।
४लटकाईआण।
५सुहणा कज़पड़ा।

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