Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) २७९

३४. ।भाई बिधी चंद रमली दे भेस॥
३३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>३५
दोहरा: अुत बिधीए की कथा जिम, लावन दुतिय तुरंग।
सुनियहि श्रोता प्रेम धरि, गुर को सुजसु अुतंग ॥१॥
चौपई: सतिगुर ते हुइ बिदा पयाना।
गमनति दाव बिचारति नाना।
तीन दिवस महि पहुचो जाई।
पुरि के पौर समीप सथाई१ ॥२॥
सभि सतिगुर के नाम अुचारे।
करि अरदास धरा सिर धारे२।
अंग संग प्रभु बनहु सहाई।
पुरवहु इहु कारज सहिसाई३ ॥३॥
इम कहि अंतर जाइ प्रवेसा।
गयो जहां ध्रमसाल विशेशा।
पैरी पैंा कहि सभि साथ।
बैठो सिमरति सतिगुर नाथ ॥४॥जितिक सिज़ख तहि करि करि नमो।
सनमानो सभि ने तिह समो।
आयो संधा मैण बुधिवान।
पसर परो तम तुरन महान ॥५॥
कुशल छेम बुझी रु बताई।
खान पान शुभ कीनि तदाई।
इतने बिखै फिरति ढंडोरा।
आयहु धरमसाल की ओरा ॥६॥
कहति फिरति इम अूच पुकारै।
जो नर खोज तुरंगम डारै।
मुख मांगो हग़रत ते पावै।
जो चाहहि, कारज बनिवावै ॥७॥
बिधी चंद बूझे सिख तहां।


१खड़ोके।
२धरती ते मज़था टेकिआ।
३छेती ही।

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