Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) २८२
४०. ।राइ जोध आदि सिज़खां दा आअुणा॥
३९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>४१
दोहरा: अपर जहां कहि सुध गई, सुनि सुनि सभि बिसमाइ।
भए तार आगवन हित, सनबंधी समुदाइ ॥१॥
बसहि ग्राम रमदास के, ब्रिज़ध को पुज़त्र सुभाग।
सुनि तारी तूरन करी, गुर दिशि आवन लाग ॥२॥
चौपई: चलो वटाले के मग आयो।
रामै संग मिलो सभि गायो।
करति शोक सो भी हुइ तार।
गमन कीनि पिखि भई सकार ॥३॥
श्री कीरतिपुरि पहुंचे आई।
सतिगुर सोण मिलि ग्रीव निवाई।
रामे सहित बैठि तबि गए।
बात करति गुर सुत की भए ॥४॥
हरीचंद, भागण अरु दारा।
इह सभि गे परलोक मझारा।
साहिबग़ादे भज़ले तेहण।
सुनति शोक कीनसि जुति गेहण१ ॥५॥
मिलि आपस महि दोनहु चले।
सने सनेमग अुलघति भले।
पूरब पहुचे पुरि करतारा।
निसा परी लखि कीनि अुतारा ॥६॥
धीर मज़ल सोण मेला भयो।
अपनि प्रसंग सगल कहि दियो।
मैण नहि गयो तिनहु के पाही।
शाहु संग मिलि रहु पुरि मांही ॥७॥
मिले सुनै बिगरहि२ ततकाला।
सकल खसोटहि, धन, पुरि, शाला३।
जहां जान ते हुइ अुतपात।
१इसत्रीआण समेत।
२(श्री गुरू जी नाल मैण) मिलिआ हां, इह सुण के (बादशाह) नाल विगड़ू।
३घर।