Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४३

अरथ: (सतिगुराण दे) दसो ही शुभ सरूप इज़के जोत दे प्रकाशक हन, (जगतविच
ग़ुलम दा) हनेरा ते (अगान दा) डाढा गुबार (देखके) आप ने सुहणा
प्रकाश करन दी चाहनां (नाल आपणे रज़बी संदेशे दा, अुपदेश दिज़ता (जिस
नाल अनेकाण) मरद त्रीमतां सिज़ख बण गए।
(जिन्हां सिज़खां ळ आप ने) प्रलोक (विच सुख पाअुण लई) सहाइता दे के (अज़गे दे
फिकर तोण) अशोक कर दिज़ता, ते इस लोक विच (जो) कंगाल (सन, अुहनां) ळ
सरदार बणा दिज़ता।
(ऐसे पिआरे) सारे सतिगुराण दे कमलां वरगे सुहणे चरणां ते (सचे) दिलोण साडी
नमसकार होवे।
होर अरथ: १. दज़सो सतिगुरू जो इको जोती दे (दस) शुभ रूप हन (ओदोण) प्रगट
होए (जद जग विच) बड़ा अंधेर ते गुबार सी।
२. आप जगत विच स्रेशट प्रकाश करना चाहुंदे सन (इस करके आप ने
आपणे रज़बी संदेशे दा) अुदेश दिज़ता (जिस नाल अनेकाण) मरद त्रीमतां सिज़ख
बण गए।
भाव: पिछे कवी जी ने दसां सतिगुराण दे वखो वज़ख मंगल कीते हन, हुण दज़सदे हन
कि अुज़पर जो पविज़त्र दस नाम सतिगुराण दे कहे हन एह नाम भी दस हन,
सरूप भी दस हन, जगत दी वरतोण विच भी वखो वज़ख वरतारे करदे सन,
पर सभ गुरू साहिबान विच जोतीइज़को हैसी। इह ओह परम गूढ गुर
सिज़खी दा भेत है जो आप श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी विच दसिआ है:-
जोति ओहा जुगति साइ सहि काइआ फेरि पलटीऐ ॥
तथा दसम सतिगुरू जी दा अुचारति स्री मुखवाक:-
नानक अंगद को बपु धरा ॥
धरम प्रचुरि इह जग मो करा ॥
अमरदासु पुनि नामु कहायो ॥
जन दीपक ते दीप जगायो ॥७॥
.........श्री नानक अंगदि करि माना ॥
अंगद अमर दास पहिचाना॥
अमर दास रामदास कहायो ॥
साधुन लखा मूड़ नहि पायो ॥९॥
भिंन भिंन सभहूं करि जाना ॥
एक रूप किनहूं पहिचाना ॥
जिन जाना तिन ही सिध पाई ॥
बिन समझे सिध हाथ न आई ॥१०॥
।बचित्र नाटक धि: ५

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