Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) २९४

४२. ।कीरत पुर दीप माला॥
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दोहरा: इस प्रकार श्री सतिगुरू, केतिक दिवस बिताइ।
सभा लगाइ बिराज ही, गावहि शबद सुनाइ ॥१॥
चौपई: केतिक संगति लिए मसंद।
करि करि बंदन जुग कर बंदि।
हुकम पाइ निज सदन सिधारे।
जहां कहां गुर सुजसु अुचारे ॥२॥
केतिक सतिगुर के ढिग रहे।
दीपमाला को मेला लहे।
-थोरे दिवस अहैण तिस मांहि।
सो करि कै निज घर को जाणहि- ॥३॥
कबि कबि सतिगुर चढहि तुरंग।
देखहि सतुद्रव तीर तरंग।
मंद मंद हय पंथ चलावैण।
कूलहि कूल१ बिलोकति जावैण ॥४॥
नेत्र तुंग के२ सैलनि तरे।
सैल करतिसुंदर थल फिरे।
अलप अुतंगनि३ थल को हेरहि।
कबिहूं कंदरा महि हय प्रेरहि ॥५॥
कहि भाने कहु संग चढावैण।
चढहि जोध आनद अुपजावैण।
कित बैसहि थल नीको जानि।
लगहि सभिनि को तहां दिवान ॥६॥
बिधीचंद बहु कार सभारी।
गुरू सदन की ठानहि सारी४।
दिनप्रति देग होहि अधिकाई।
सिख संगति अचवहि समुदाई ॥७॥
आवहि जाहि समूह हमेश।

१कंढे कंढे।
२जिस ळ हुण नैंां देवी दी टिज़ला कहिदे हन।
३अुज़चे नीवेण।
४सारी (कार) करदा है।

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