Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 282 of 375 from Volume 14

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) २९४

३९. ।मीआण खां ते अलफ खां दी पहाड़ीआण पर चड़्हाई॥
३८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>४०
दोहरा: इस प्रकार श्री सतिगुरू,
केतिक दिवस बिताइ।
भीमचंद सोण रस भयो,
दीनसि दैश मिटाइ ॥१॥
पाधड़ी छंद: अवरंग तुरकपति नहिन देश१।
चढि गयो दिशा दज़खन बिशेश।
करि बड मुहिंम सैना बिसाल।
जहि तानि शाहि सज़यद बिसाल ॥२॥
गढि गोल कुंड२ मावास कीनि।
गण चमूं हनति नहि दरब दीनि३।
जहि नगर हैदरावाद आहि।
तहि करतिबास बड राज तांहि४ ॥३॥
बित गए बरख बहु होति जुज़ध।
नहि मिटति दुहूं दिशि अधिक क्रध।
इस देश५ बिखै सूबे बिसाल।
सभि राज साज करते कराल ॥४॥
इक मियांखान अुमराव तांहि६।
रहि संग बाहिनी अधिक जाणहि।
पुरि बसे जाणहि जंमूं महान।
चढि गयो तांहि दल संग खान७ ॥५॥
इक अलफखान तिह संग बीर।
पशचात चलहि जिह सुभट भीर८।
तिह साथ हुकम मियां खां बखानि।


१नहीण सी देश विच।
२नाम है किले दा-गोल कंडा।
३(नौरंगे दी) बहुती सैना मारदा सी, (नौरंगे ळ) धन नहीण सी दिंदा।
४भाव तानेशाह दा।
५इज़थे दिज़ली दे लागे।
६बचिज़त्र नाटक विच आइआ है। मीआण खांन जमूं कहि आयो।
७खानां दी सैना नाल (लैके) तिज़थे भाव जमूं वल चड़्ह गिआ।
(अ) नाल दल लैके खां चड़्ह गिआ।
८सूरमिआण दी भीड़।

Displaying Page 282 of 375 from Volume 14