Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन १) २९५
पट सूखम, दीनार, किकान ॥३७॥
श्री बाबा नानकजहि थिरे।
तिसी घाट गुर मज़जन करे।
तहां बैठि करि सिंघन साथ।
पूरब को प्रसंग कहि नाथ ॥३८॥
गमनति करते सहज सुभाइ।
श्री बाबा जी बैठे आइ।
गोरख लीए सिज़ध समुदाई।
आनि अदेश अदेश अलाई ॥३९॥
चरचा कुछक जंग की कीनि।
जथा जोग तबि अुज़तर दीन।
सुनि सिध सकल निमे कर बंदि।
गोरख, भरथरि, गोपी चंद ॥४०॥
मंगल आदिक सुजसु अुचारा।
-श्री बाबा तुम धंन अुदारा-।
इम बोलति जिस काल क्रिपाला।
तहि के नर करि मेल बिसाला ॥४१॥
बिज़प्र बनक ते आदिक जाल।
चलि आए चेतन दिज नाल।
करि करि नमो प्रवारति बैसे।
कौन जात बूझति भे ऐसे ॥४२॥
संग आप के केसन धारी।
का इन की दिहु जाति अुचारी।
बूझति हैण लखि बेस नवीना।
हिंदु तुरक इम किनहु न कीना ॥४३॥
सुनि करि गुर फुरमावनि कीआ।
भयो खालसा जग महि तीआ१।
हिंदू तुरक दुहिन ते नारो।
श्री अकाल के दास बिचारो ॥४४॥बीज मात्र अबि रूप दिखावा।
हति तुरकन ठानहि छित दावा।
१तीजा।