Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३०४
प्रान सहत सुत को करहु, हम सभि अनुसारे।
निस बासुर सेवा लगहिण, हम दास तुमारे।
सावं मल ने कहो तबि, ले म्रितक सु आवो।
भीर हटावो सकल ही, करि शांति बिठावो ॥३७॥
वाहिगुरू सिमरन करहु, नहिण रोदन कीजै।
सतिगुर पर बिशवाश धरि, अुर सभि हरखीजै।
न्रिप सुत म्रितक अुठाइ करि, आनो ततकाला।
सावं के आगे धरो*, बिसमाइ बिसाला ॥३८॥
बसत्र अुघारो बदन ते+, जल बहुर मंगायो।
तिस रुमाल की खूंट१ इक, धोई कर लायो२।
सो जल जबि मुख महिण परो, सतिनाम बखाना।
सीस छुहाइ रुमाल को, आए तिस प्राना ॥३९।
जथा संजीवनि३ जल घसी, लछमन मुख डारी।
तथा कुवर जीवति अुठो, चख पलक अुघारी४।
राजा मिलो पसारि भुज, रानी मुख चूंमा।
ठांढो ततछिन सो भयो, तजि करि तल भूमा५ ॥४०॥
इति स्री गुरप्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे सावं मल राज पुज़त्र
जिवाइबो प्रसंग बरनन नाम एक त्रिंसती अंसू ॥३१॥
*पा:-करो।
+पा:-बदन अुघारो बसतर ते।
१कंनीण।
२हथ नाल धोती।
३इक मंनी होई बूटी जिस नाल मुरदे जीअु पैणदे हन। लछमण मूरछित ळ एसे बूटी नाल
जिवाइआ लिखिआ है। इक विज़दा दा बी नाम है जो मुरदे जिवालन वाली मंनदे हन, शुक्र जी
मोए दैणतां ळ इसे नाल जिवा लैणदे लिखे हन। वैदक विच इक दवाई दा बी नाम है।
४नेतर दी पलक खोली।
५प्रिथवी दा थल छडके (मुंडा) अुठ खड़ोता।