Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३)३०७

३५. ।गुरबाणी दीआण पोथीआण लईआण। मोहन जी॥
३४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>३६
दोहरा: श्री मातुल तुम आप हो, बखशन जोग बिसाल।
को औगुन तुम बिखै रहि, पूरन गुन सभि काल ॥१॥
चौपई: श्री अरजन ते सुनि इम कहो।
प्रथम प्रसंग सरब तुम लहो।
तअू सुनहु सभि तुमै सुनावौण।
पुनहि ढीठता१ निज बखशावौण ॥२॥
महां पुरखु पूरन गुन गानी।
हमरे पिता भए सुख दानी।
श्री गुर२ रामदास बडभागे।
परम प्रेम ते सेवा लागे ॥३॥
आपा नहीण जनावनि कीनसि।
निरहंकार गरीबी लीनसि।
सभि गुन पूरन श्री गुर जाने।
सभि औगन अपने३ महि माने ॥४॥
जे दिन को कहि४ आधी रात।
तिअुण मानहि भाखी -सत बात५-।
निस दिन सेवा महु अनुरागे।
सरब भांति जग कारज तागे ॥५॥
अपनो पित हम जानति रहे।
ईशुर आप, भेव नहि लहे।
जे कुछ जानति भे बडिआई।तअू पिता लखि६ हम सुखदाई ॥६॥
सेव न कीनसि, कहो न मानो।
-हमरो पिता- गरब इम ठानो।
श्री गुर रामदास पर यां ते।


१बे अदबी।
२भाव श्री गुर अमरदास जी ने।
३भाव गुरू रामदास जी ने।
४भाव गुरू अमर देव जी।
५मंनदे सन (गुरू रामदास जी) सत बचन कहिके।
६पिता ही जाणिआण।

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