Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरजग्रंथ (राशि ४) ३०९

४०. ।श्री गुर हरि गुविंद जी ने प्रण कीता॥
३९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ४ अगला अंसू>>४१
दोहरा: हरि गुविंद अरु ब्रिंद सिख, रुदित स शोक बिलद।
देखति भाखति ब्रिज़ध तबि, कीजहि खेद निकंद१ ॥१॥
चौपई: सतिगुर नहि सोचन के२ योग।
सुजसु बिथारो चौदस लोग।
घन समान तनि धरि बिदतावैण।
जग कारज करि बहुर बिलावैण३ ॥२॥
परम धाम बैकुंठ सिधारैण।
ब्रिंद अनद बिलद बिहारैण४।
करि गादी पर पुज़तर अबादी५।
भए सरूप लीन निज आदी६ ॥३॥
जे कारज करिबे कहु आए।
नीके पूरन करि समुदाए।
कान्हे स्राप साच के हेतु।
सही सजाइ सु चंदु निकेत ॥४॥
पूरनता दिखाइ ब्रहम गानी।
जिन के तनहंता ब्रिति हानी।
निज सरूप ते फुरनो आन।
अुठनि न दीनसि इक रसवान ॥५॥
जग की बरतं सहिज सुभाइ।
बिना जतन जिम होती जाइ।
भगत कबीर नामदिअु आदि।
भीर परी कीनसि प्रभु यादि ॥६॥
कुछ ते कुछ करि नरनि दिखाई।
गान अूनता इही जनाई७*।

१दुख दूर करो।
२शोक करन दे।
३लोप हो जाणदे हन।
४(विच) विचरदे हन।
५भाव, इसथिति।
६आपणे मुज़ढले (सरूप) विच।
७इह (अुहनां ने) गान दी कमी दिखाई।
*कबीर आदिकाण तोण गुरू जी दी अधिकता कैसी सुंदर दरसाई है।

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