Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) ३१३

३३. ।इक दिज दी इसत्री पठान ने खोही॥
३२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>३४
दोहरा: सैदबेग ते सबि सुनो, गिरईशरन१ ब्रितांत।
सैन गुरू पर दरब दे, लाए लरन प्रयाति२ ॥१॥
चौपई: अुदे सिंघ आलमसिंघ आदि।
सभि सुनि करि होए बिसमाद।
-मंद मती सभि दुशट पहारी।
रचो कपट आनो दल भारी ॥२॥
इक दिन सतिगुर सभा मझारा।
थिरे, खालसा आयहु सारा।
दइआसिंघ मुहकम सिंघ धीर।
धरम सिंघ हिंमत सिंघ बीर ॥३॥
ईशर सिंघ टेक सिंघ आए।
इज़तादिक गुर को दरसाए।
आलम सिंघ कही तबि बात।
प्रभु जी! गिरपति गति बिज़खात३ ॥४॥
अूपर ते मिलि कीनस मेला।
राखो अंतर कपट दुहेला।
सैन अचानक तुरकनि केरी।
लरिबे हेत आनि करि गेरी४ ॥५॥
सैदाबेग बतावनि सार५।
गहिबे हित तुम को छल धारि।
रावर को प्रताप है भारा।
छुइ न छाव भी सकैण गवारा६ ॥६॥
दे करि दरब तुरक गन आने।
इसी जतन महि लगे महाने।
सुनि करि अुदे सिंघ भी कहो।


१पहाड़ी राजिआण दा।
२कि (साडी) सैना ळ दौलत देके गुर जी नाल लड़न वासते लिआए सन।
३पहाड़ीआण दी (अंदर बाहर) दी गती प्रगट हो गई है।
४ढोई।
५सारे (हाल)।
६पर गंवार आप दी छाया ळ भी नहीण छुह सकदे।

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