Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) ३१५

४५. ।थानेसर मेले ते। बणी बज़दर पुर॥
४४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>४६
दोहरा: ग्राम बारने ते गुरू,
कीनो अज़ग्र पयान।
सेत सजति पोशिश महां१,
सत तुरंग सुजान ॥१॥
चौपई: गर शमशेर दुतिय दिशि भाथा।
अधिक कठोर सरासन२ हाथा।
सभि समाज युति पंथ पधारे।
नगर थनेसर आइ अगारे ॥२॥
खशट कोस थो मग अुलघाए।
देखो तीरथ जहि समुदाए।
सूरज ग्रहण जानि करि मेला।
चहुदिशि ते नर भयो सकेला ॥३॥
भीर नरनि की घनी सु आवति।जहि कहि नर डेरा निज पावति।
पहुचे सतिगुरु पिखहि सु थान।
हित अुतरनि के करनि शनान ॥४॥
पुरि ते अुज़तर की दिशि गए।
रम३ सथान बिलोकति भए।
सुंदर सारसुती बर सलिता।
पावन जल कबि कबि शुभ चलता ॥५॥
तिह सथान तीरथ अभिराम।
बिदत जगत महि लखीयति नाम।
तिस के तीर अुतरि थल टोरा।
धर पर खरे भए तजि घोरा ॥६॥
तीर तीर तीरथ गन जाने।
श्री गुरदेव हेरि हरखाने।
सभि नर आए सिवर लगायो।


१चिज़टी बहुत शोभदी है पोशाक।
२धनुख।

३सुहणा।

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