Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १०) ३१७

४६. ।पटराणी पछांी॥
४५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १० अगला अंसू>>४७
दोहरा: होइ तार श्री सतिगुरू,
निकसे डेरा छोरि।
संग नरिंद अनद युति,
चलि अंतहि पुरि ओर ॥१॥
चौपई: सादर बोलति सतिगुरू साथ।
नगन पैर गमनति नर नाथ।
सिंघ पौर जबिहूं चलि आए।
हेरति अुठे लोक समुहाए ॥२॥
राजे को सभि मुजरो१ करैण।
गुर के चरन कमल सिर धरैण।
बंदति चहुं दिशि ते प्रविशाए।
अंतर गए सदन सुधराए ॥३॥
पिखो चौणक चौकोन सु चारू।
चारहु दिशि घर बने अुदारू।
पुन सौपाननि२ पर आरूढे।
मंद मंद श्री गुर गुन गूढे ॥४॥
फूल छरी को चपल करंते।
कबहि भ्रमाइ अुतंग अुठते।
मंदिर सुंदर अंदर गए।
चिज़त्र बचिज़त्र, जहां बहु किए ॥५॥अुपबन लिखो फूल फल नाना।
केहरि, करी३, कुरंग महाना।
कीर४, कबूतर, कोकिल५, केकी६।
म्रिग, खग, सुंदर बरन अनेकी ॥६॥
अधिक अुतंग शिखर जिन केरे।


१नमसकार।
२पौड़ीआण।
३हाथी।
४तोते।
५कोइलां।
६मोर।

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