Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ४) ४३
५. ।राजिआण दी सलाह। काग़ी सलार दीन॥४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ४ अगला अंसू>>६
दोहरा: सुनी लड़ाई गिरपतिनि, चित शंकत सभि होइ।
अलप चमू गुर संग है, हमरे राजे दोइ ॥१॥
चौपई: सैना पठी संग समुदाई।
किम रण करति पराजै पाई।
वडे बहादुर अुर हंकारी।
आयुध बिज़दा जानत सारी ॥२॥
ठहिरे कोण न गुरू के आगे।
हुइ घाइल से ततछिन भागे।
जे गुर संग होइ दल महां।
हमरो राज थिरहि तबि कहां ॥३॥
नितप्रति जाट कमीनी जाति।
बनहि सिंघ पाहुल ले जाति।
खड़ग तुफंग केस कछ धरैण।
बहु बिधि मार बकारा करैण ॥४॥
पातिशाह राजा नहि गनैण।
-मारि मारि- सभिहिन को भनैण।
वधति जाति नित प्रति इम पईअति।
जिम पड़वा ते निसपति लहीअति१ ॥५॥
इन को चहीऐ करनि अुपाइ।
अलप अहैण सभि किछु बनि जाइ।
लघु बूटे को तुरत अुखारैण।
सकैण हलाइ न, बट जबि भारै२ ॥६॥
अगनि चिंगारा तुरत बुझाई।
बन लगि पसरै, है न अुपाई।
थोरनि दिन को केहरि होइ।
पकर लेहि निरबलहुइ सोइ ॥७॥
जबि अपनो बल धरि करि गरजै।
कौं समुख हुइ तिह तबि तरजै।
१जिवेण एकम तोण चंद्रमा (वधदा) वेखीदी है ।संस:, प्रतिपदा॥।
२हिला ना सज़काणगे जदोण भारी हो जाअू बोहड़।