Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) ३२४
४०. ।जंग दीआण तिआरीआण॥
३९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>४१
दोहरा: तिसी ताल के दुइ दिस,
लहिरा औरु मर्हाज१।
पहुचे श्री हरिराइ जबि,
ग्राम बसाए साज२ ॥१॥
चौपई: दुइ दुइ कोस दोइ दिश ग्रामू।
लहिरा अरु मर्हाज जिस नामू।
श्री सतिगुर हरिराइ बसाए।
अज़ग्र कथा इह देअुण सुनाए ॥२॥
श्री हरि गोविंद पहुचे जाइ।
हुती अुजार तहां समुदाइ।
नहीण ग्राम नेरे, नहि पानी।
भए मवास महां गुनखानी ॥३॥
सभि सुभटनि को दीनि सुनाई।
रहहु सुचेत करहु तकराई।
रिपु गन पहुचे ही अबि जानोण।
दै गुलका भरि३ हतहु निशानो ॥४॥गुर प्रताप ते जढ रिपु बनै४।
आइ समूह सुगम ही हनैण।
जिम हय लाइ लगाइ कलक५।
तिम लिहु बिजै संघारि निशंक ॥५॥
सुनि अुतसाह भटन को होवा।
अधिक बीर रस रिदै परोवा।
ग़ीन समेत खरे हय राखे।
आप सनधबज़ध रिपु काणखे६ ॥६॥
इम सतिगुर तहि कीनसि डेरा।
१दो पिंडां दे नाम हन।
२सजाके।
३दो दो गोलीआण भरके।
४वैरी जड़ हो जाणगे।
५(वैरी ळ) कलक ला के।
६वैरी ळ अुडीकदे हन।