Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) ३२५

४३. ।आलसून मारना॥
४२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>४४
दोहरा: दै बिसंत गिनती बिखै,
धारि पहारनि केरि।
महां बहादर बिदत भे,
सतिगुर बीर बडेर ॥१॥
सैया छंद: शज़त्र मिज़त्र गिरपती१, पहारी
सभा लगाहि बीर२ जिस थान३।
जहि संग्राम बारता होवहि
शसत्र प्रहारनि करहि बखान।
तहां प्रथम गिनती महि सगरे
कलीधर को गिनहि महान।
जुज़ध प्रबिरते नाम जि सिमरहि
सो भी बिजै पाइ रिपु हानि४ ॥२॥
ब्रिंद शज़त्र हुइ, गिनहि न मन महि,
थोरनि साथ हतहि हथीआर५।
निरभै होइ प्रवेशति रन महि,
अरहि बीर तिसमारहि डार।
रिपु नहि ठहिरहि भै धरि भाजहि,
बिजै लछमी लेति अुदार।
इज़तादिक बहु करहि सुजसु को,
दरसहि बंदहि आनद धारि ॥३॥
पुरि नदौं महि भौन चुकोने
चूने संग चिनहि बहु भाइ६।
सुंदर दर बर७ ब्रिंद बने* जिन


१श्री गुरू जी दे मित्र वा शज़त्र पहाड़ी राजे।
२पहाड़ी सूरमे।
३जिज़थे सभा ला (बैठदे) हन।
४(ऐअुण कहिदे हन कि जे कोई) जुज़ध विच रचिआण (कलीधर जी दा) नाम ही सिमर लएगा अुह
बी जिज़त पाएगा ते वैरी ळ नाश करेगा। फिर देखो कि आप.....)।
५चाहो किंने वैरी होण मन विच प्रवाह नहीण करदे, थोड़िआण नाल ही हथार वाहुंदे हन।
६चिंे होए सन बहुत तर्हां दे।
७श्रेशट।
*पा:-पटे।

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