Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) ३३४

३६. ।हुशनाक सिंघ, फ्रंगी, फराणसीसी॥
३५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>३७
दोहरा: रामकुइर लिखवावई, सतिगुर को इतिहास।
कहै लिखारी! लिखहु अबि, गुर के वाक प्रकाश ॥१॥
निशानी छंद: १स्री गुर मुख ते सुनोण* जिम, सो मैण लिखवावौण।
अकथ कहांी गुरू की, कुछ भेद ना पावौण।
ए सभि कथा सुनाइ करि, अुठि सतिगुर चाले।
मंदिर अूचे पर चढे, मैण पीछे नाले ॥२॥
थिर है करि थल रुचिर पर, करि ुशीबिसाला।
कहि बुढिआ बुज़ढा हुवीण, बय रहि चिरकाला२।
तेरो घर जबि पार है हमरो सु अुरारा।
तेरो होइ अुरार जबि, हमरो तबि पारा+ ॥३॥
तीनवार इम बाक करि, अवलोको नाथा।
ढाल कटारी करद इक, बखशी निज हाथा।
करि पग पंकज बंदना, आयो निज डेरे।
सुपति बिताई जामनी, पुन अुठा सवेरे ॥४॥
*सौच शनानहि ठानि कै, मैण दरशन हेता।
गयो जबहि देखे नहीण, तहि क्रिपा निकेता।
सुनो गए सरिता निकट, मैण तितहि पयाना।


१भाई राम कुइर जी कहिदे हन।
*पा:-भनोण।
२हे बुढे ही बंम....। (अ) हे बुढिआ बुज़ढा होवेणगा तेरी चिर समेण तज़क आयू रहेगी।
+सौ साखी दा पाठ है:-तेरा घर पार साडा अुरार। साडा घर पार तेरा अुरार। इस दा भाव इह
है कि जद तूं पार (= परलोक) वज़सदा सैण तां असीण अुरार (= इस लोक विच) आ गए होए ते
वज़स रहे सां। हुण समां आ रिहा है कि तेरा निवास अुरार (= इस लोक विच) रहेगा, ते असीण
प्रलोक चले जावाणगे। राम कौर जी दसमेश जी तोण छे कु बरस छोटे सन (देखो रु: १ अंसू ५ अंक ५)
इथे प्रसंग है कि बुढिआ तेरीअुमर बुज़ढी होवेगी तूं चिरकाल रहेणगा। सो रामकौर जी गुरू
साहिब जी तोण पिज़छोण लग पग ५३ बरस जीवे। आप दा चलांा १८१८ दे लग पग होइआ। (अ)
इस वाक दे दो अरथ होर लाअुणदे हन:-तेरा घर रमदास सतलुजोण पार साडा अनदपुर अुरार।
अगोण ळ तोण अुरार एसे पंजाब विच ते असीण पार = दखं विच जा रहांगे। दूसरा अरथ:-तेरा
घर रात ळ जद परे होवेगा साडा अुरे होवेगा। दिन चड़्हे जद तूं अुरे आवेणगा साडा परे नदी दे
किनारे होवेगा, पर इह दोइ अरथ अप्रसंगक हन। प्रसंग बुज़ढे (राम कौर जी) दे वडी अुमर
वाले होण दा चिरकाल जीअुण दा है। अुपर दिते अरथ दी प्रौढता सौ साखी दी पहिली साखी दे
इस वाक तोण बी हो जाणदी है। क्रिशन ळ अूधो रज़खके आप चले गए थे, गुरू के भाई गुरबखश
सिंघ ळ रज़खके प्रलोक सिधारनगे।
*एथोण सौ साखी दी ४वीण साखी चज़ली।

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