Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १०) ३३८

४९. ।सरीर ळ खेचल॥
४८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १० अगला अंसू>>५०
दोहरा: न्रिप जै सिंघ अुठि भोर को, शाहु समीप सिधाइ।
साथ अदाइब देखि कै, पहुचो सीस निवाइ ॥१॥
चौपई: नौरंग द्रिग अवलोक नरेशा।
बूझी गुर की गाथ विशेशा।
किम सेवा करि कै पहिचाने।
बैस इआने परम सुजाने ॥२॥
करामात कुछ परखनि करी।
अहै कि नहि बड शकती धरी।
रहै समीप पिखति अरु बोलनि।
केतिक बार करो तैण तोलनि ॥३॥
सुनि महिपालक हाथनि बंद।
करो कि अहैण अतोल बिलद।
को समरथ जो परखहि भार।
महां गंभीर सदीर अुदार ॥४॥
पटरानी मैण कोन बिठाई।
अपर भले थल मैण समुदाई।
-जे अंतरजामी गुर अहैण।
महिखी अंक जाइ करि बहैण- ॥५॥
इम चितवति करि कै सभितारी।
आइ कीनि मैण बिनै अगारी।
-हम ते पता चहै- मन जानि।
यां ते रु फेरनि को ठानि ॥६॥
तअू होइ नम्री बहु भांती।
कहि कहि कीरति की गनि बाती।
ले गमनोण मंदिर रणवास।
जबि पहुचे सभि त्रीयनि पास ॥७॥
फूल छरी सिर धरि कहि बानी।
-नहि भूपति की इह पटरानी-।
सगरी नारि अुलघति गए।
बैठी जहां मलिन पट लिए ॥८॥

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