Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) ४६

४. ।बाग़ गुरू जी ने फड़िआ॥३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>५
दोहरा: खेलति अधिक शिकार को,
शाहजहां बन मांहि।
हति करि चलो लहौर दिशि,
हने जीव बहु तांहि ॥१॥
चौपई: बाज वलाइत किसि ते आयो।
हित सुात पिखि भलो पठायो।
लखि आछो हिति पिखनि तमाशे।
चढो शाहु आयो इत पासे ॥२॥
हटि जबि चलो१, बिहग सुरकाब२।
निकसि अुडो पिखि शाह अजाब३।
निज कर ते तबि बाज चलायहु।
तीर मनिद बिहग पर आयहु ॥३॥
हुतो अघायहु करी न चोटि४।
बाजि कुमति नर महि इह खोट।
त्रिपति होइ पुन काम न आवैण५।
दा देति प्रभु ते६ फिरि जावैण ॥४॥
देखति रहो शाहु बहुतेरा।
गयो बाज खग पाछे हेरा।
नहि मारो नहि हटि करि बैसे७।
चलो गयो अुडि नभ महि तैसे ॥५॥
थकति शाहु तहि ते चलि परो।
लवपुरि ओरि पयाना करो।
कुछक सअूरनि के तहि मोरि।


१(पातशाह) जदोण मुड़ चलिआ।
२चकवा।फा: सुरखाब॥
३अनोखा, अजीब।
४(बाग़) रज़जिआ होइआ सी (सुरखाब ळ अुस ने) मारिआ ना।
५बाज ते मूरख पुरश विच इह खोट है
कि रज़जे होए कंम नहीण आअुणदे।
६मालक तोण।
७नां ही हज़थ ते बैठा मुड़के।

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