Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 335 of 412 from Volume 9

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ३४८

४९. ।अलादीन दी मौत दज़सी। सुपना सुणाया। बेड़ी जोड़ी। लोकाणजन॥
४८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>५०
दोहरा: इक दिन बैठे सभा महि,
नदन श्री हरिराइ।
अपर सभासद अनिक तहि,
बोलहि सहिज सुभाइ ॥१॥
चौपई: हुतोअलावदीन बिच बैसा।
बातनि को प्रसंग कुछ ऐसा।
भनहि सभा महि शाहु सुनावति।
निज अुज़तमता अधिक जनावति ॥२॥
सहि न सको गुर सुत ने कहो।
निज म्रितु को दिन तैण भी लहो?
चातुरता जुति कहति घनेरे।
लखति न काल आइ भा नेरे ॥३॥
अंतर ते अंधे नहि दीखहि।
वहिर बनति बड पीर सरीखहि।
सुनति शाहु ने गिरा बखानी।
जे करि तुम ने इस म्रितु जानी ॥४॥
तौ बताइ दीजै सभि मांही।
कबि फरेसते इस ले जाहीण?
जानो जाइ सु बाक तुमारा।
सुनि करि सतिगुर नद अुचारा ॥५॥
रही आरबल अशट दिवस की।
जाम जामनी रहि म्रितु इस की।
शाहु समेत सभा ने सुनो।
इनहु बाक कबि कूर न भनो ॥६॥
निशचै म्रिज़तु काल तिस पावै।
बय पूरन ते कौन बचावै।
शंकत हुइ अलावदीण आयो।
अशट दिवस जबि तहां बितायो ॥७॥
जाम जामनी बाकी रही।
बिती आरबल म्रितु तिह लही।

Displaying Page 335 of 412 from Volume 9