Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) ३५७

५०. ।ब्रहमा वलोण देवतिआण प्रति पुरातन कथा॥
४९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>५१
दोहरा: दिढतपसा महि धान लगि१,
तप को तेज बिसाल।
खरभर देवन महि परो,
आकुल२ भे तिस काल ॥१॥
सैया छंद: अगनि पुरोगम३ सहित पुरंदन४
गए ब्रिंद सुर ब्रहमा पास।
किस ने तेज तिगम तप५ तापो
सुरग लोक लौ भयो प्रकाश?
नहीण सहार सकहि सुर सारे
कठन घोर अस बिदतो रास।
करुना करहु सहाइक है करि
हमरे संसै देहु बिनाश ॥२॥
कहो द्रहण६ ने चिंता तागहु
काल समापति तप को आइ७।
अखल जगत को रज़खक सामी
सो तुमरे भी होहि सहाइ।
प्रथम अवतरे८ प्रभु पुरशोतम
श्री नानक निज नाम धराइ।
बरतो बिना काल कलि भैरव९
भरो नरक पापी समुदाइ ॥३॥
तिन जीवनि को नाम अलब दिय
सतिसंगति को पंथ बिसाल१०।


१लगाइआ होइआ।२विआकुल।
३देखो रास २ अंसू १२ अंक १६ दा प्रयाय।
४इंदर।
५अुज़ग्र तेज वाला तप ।संस: त्रिगम॥
६ब्रहमा।
७तप दा समां मुज़कं ळ आइआ है।
८अवतार धारिआ।
९भानक कलजुग बिना समेण तोण वरतिआ है।
१०स्रेशट रसता (चलाया ने)।

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