Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) ३५६

३९. ।माता गुजरी जी ळ देवी दा प्रसंग सुणाइआ॥
३८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>४०
दोहरा: *इस प्रकार सतिगुरू के, हेरि चरितबिसमाइ।
सहहि कसौटी सिज़ख को, को बेमुख हुइ जाइ ॥१॥
निशानी छंद: अुज़ग्र तेज मुख पर दिपहि, चित अुज़ग्र सुभाअू।
अुज़ग्र बोलिबो रस भरो, सभिहूंनि सुनाअू।
आशै अति गंभीर जिन, अुर धीर प्रबीरं१।
रहै प्रकाशो बीर रसु, जनु धरो सरीरं ॥२॥
कबहु मौन ही करि रहैण, कबि कहहि अुताले।
वाक जथा निकसै बदन, तिम हुइ ततकाले।
त्रसति रहैण सेवक निकट, जे कार चलावैण।
अंतरजामी सतिगुरू, मन की लखि पावैण ॥३॥
सुत सुभाअु को देखि करि, श्री गुजरी माता।
कहि न सकै चाहति रहहि, -का गति है ताता? -।
किती बार गमनहि निकट, बैठहि अवलोकै।
रु परखहि नहि अपनि दिशि, कहिबो मुख रोकै२ ॥४॥
माता दिशि ते मौन करि, बैठहि सभि जानैण।
-होइ भविज़खत महि जथा, कहिबो नहि मानै-।
इस बिधि बीते कितिक दिन, बिसमावति माई।
हित बोलन द्रिड़ बुज़धि करि, नदन ढिग आई ॥५॥
बैठे हुते इकंत तबि, नहि सिज़खनि भीरा।
अभिनदन३ सुत को करति, बोली थिरि तीरा।
हे सुत! नितप्रतिहोति है, मेरो मन थोरा।
सुख न* बिलोको मैण कबहु, करि मोह सु तोरा ॥६॥


*हुण सौ साखी दी १७वीण साखी चज़ली है।
१चंगे सूरमे।
२भाव मुखोण नहीण अुचारदे माता जी।
३अशीरवाद।
*अुह माता जिस दे पती श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी होण ते सपुज़त्र श्री कलीधर जी होण ते
जिस दी ब्रिती हर समेण नाम सिमरन विच रची होवे अुस दे मुखोण इह शोक मई वाक अखवाअुणे
कि तेरे पिआर विच मैण कोई सुख नहीण डिज़ठा सौ साखी दे आखेपकाराण दी अुकाई है, अुहनां ने
आम मावाण दे मोह ते दावे दे भाव ळ दज़सिआ है। कवि जी ने केवल अुन्हां दा भाव ही छंदा बंदी
विच अुलटा दिता है, जैसा कि अंसू ३८ दे अंक २९ विच कवि जी लिख आए हन। श्री मुख वाक
माता जी बाबत इह है:-तात मात मुर अलख अराधा। बहु बिधि जोग साधना साधा। जोग

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