Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ४) ३६१
४७. ।बिभौर दे राणे नाल मेल॥
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दोहरा: वार पार दरीआअु के, सतिगुर करैण अखेर।
चढैण जबै छित बिचरते, अूच नीच थल हेरि ॥१॥
चौपई: एक दिवस चढि गुरू पयाने।
पुरि भंभौर* बसहि जिस थाने।
संग खालसे को दल भारी।
बजति जाति रणजीत अगारी ॥२॥
तहि के राव सुनी धुनि जबै।
हरखति होइ अरूढो तबै।
निज परधान लए कुछ संग।
देनि हेतु करि तार तुरंग ॥३॥निकसि नगर ते बाहिर आयो।
जित धुनि सुनी तितै को पायो।
प्रथम सचिव को निकट पठाइ।
आप गयो तूरन तबि धाइ ॥४॥
देखति अुतरि तुरंग ते आयो।
चरन सरोजन को लपटायो।
श्री प्रभु! क्रिपा करी इत आए।
मोहि आपनो लीन बनाए ॥५॥
मैण अति मंद न महिमा जानी।
नहीण शरन पकरी सुख खानी।
चलहु नगर करि पावन पावन१।
सगरे मंदिर करीअहि पावन ॥६॥
इज़तादिक जबि कीनि बिनती।
ढरे क्रिपा तजि औरे गिनती।
जे करि तुव अुर भाअु बिसाले।
चलहु बिलोकहिगे ग्रिह चाले ॥७॥
दे करि भेट अगारी होवा।
सने सने चलि मारग जोवा।
*कवी जी ने दो तर्हां इस ळ लिखिआ है:-भंभौर, बिभौर।
१चांन पाके।