Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) ४८

६. ।माता नानकी जी॥५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>७
दोहरा: सकल ग्राम महि बिदत भी -मज़खं सिख इक आइ।
दई अुपाइन सभिनि को, जो सोढी गुरु थाइ- ॥१॥
चौपई: श्री गुरु तेग बहादर माता।
नाम नानकी जग बज़खाता।
पतिबरता ध्रमातम रूपा।
रुचिर सुशीला गुणनि अनूपा ॥२॥
मधुर भाशंी१, दीरघ दरसा।
सतिगुरु धान पराइं हरसा२।
प्रिय पुज़त्रा, मन म्रिदुल, कुलीना।
सदा क्रिपालू, परम अदीना३ ॥३॥
तिस ढिग गए दास तबि दौरे।
बैठे चित शांती घर ठौरे।
कहो जाइ हे दीरघ माता!
इक सिख आयो गुरु जसु गाता ॥४॥
धनी महत बुधिवंत घनेरा।
कल संधा किय बाहर डेरा।
साथ मनुखनि को समुदाया।
आज ग्राम अंतर चलि आया ॥५॥
पूरब गयो धीरमल डेरे।
सुजसु मसंद कहैण तिह प्रेरे४।
सपत अशरफी* तहां चढाइ।
दै दै सभिनि सोढीयनि थाइ ॥६॥
बूझे५ संग मसंद जि होते।
-पहुची भेट सभिनि ढिग मो ते-।
नहीण जनायो थान तुमारो।१मिज़ठा बोलं वाली।
२प्रसंन रूप।
३बहुत अुज़ची आतमा वाली।
४मसंद तिस (सिज़ख) ळ प्रेरना वासते (धीर मज़ल दा) जस कहिदे हन।
*दो धीर मज़ल ळ होर सोढीआण वाणू ते पंज गुरू ग्रंथ सहिब जी दी भेटा ।तवा: खा:॥
५(मज़खं शाह ने) पुछिआ।

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