Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) ३६४

४८. ।गुपाल ते हुसैनी दी सुलह लई संगतीआ सिंघ आइआ॥
४७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>४९
दोहरा: भूप क्रिपाल कटोचीआ, भीमचंद ते आदि।
मिले सु राखहि निकट तिस, कहि सादर संबाद१ ॥१॥
चौपई: इकठी सैन करित समुदाया।
चहै अनद पुरि गुरू ढिग आया।
-संघर घाल२ घनो घमसाना।
करोण पराजय, कै हुइ हाना३ ॥२॥
देअुण चमूं को ग़ोर बडेरा।
मिलहि त लैहोण दरब घनेरा।
भेजो पुज़त्र दिलावर खान।
जिन ते डर हटि गयो निदान४ ॥३॥
तिस कारन ते मैण चढि आयो।
संचि५ घनो दल संग पठायो।
नहीण अनदपुरि मारौण जावद।
बनै न हटि करि जैबो तावद ॥४॥
लरिबे को बल केतिक धरैण।
देखोण अबि जेतो रण करैण-।
इम गिनि गिनि मन ठानहि तारी।
दिन प्रति मेल कियो६दल भारी ॥५॥
तोण तोण करि हंकार घनेरा।
चहैण अनदपुरि पावन घेरा।
नद चंद ते आदि मसंद।
श्री गुजरी युति दुखिति बिलद ॥६॥
तीन भानजे प्रोहित और।
समुझावहि सोढी कुल मौर।

१जो मेल करदा है अुस ळ आदर नाल पास रज़खदे हन ते दज़सदे हन (गुरू जी नाल) झगड़े दी
गल। (अ) मिले हन (हुसैनी नाल) (जो अुन्हां ळ आदर नाल कोल रज़खदा है अुस ळ (अुह राजे गुरू
जी नाल) झगड़े दी गल कहिदे हन।
२जंग कराणगा वडे घमसान दा। (अ) घेरा पाके घमसान कराणगा।
३जिज़त लवाणगा जाण मारिआ जाएगा।
४मूरख (दिलावर दा पुज़त्र)।
५इकज़ठा करके।
६कज़ठ कीता।

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