Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 352 of 448 from Volume 15

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) ३६४

४०. ।लांगरी तकरारी। कही लोकाई। लगर अटका॥
३९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>४१
दोहरा: +इस प्रकार श्री सतिगुरू, बैठे सभा सथान।
ब्रिंद सिज़ख मिलि कै तबै, करी पुकार महांन++ ॥१॥
निशानी छंदु: गुरू गरीब निवाज प्रभु, हे क्रिपानिधाना!१
तकराई सु प्रसादि कै, सभिहिनि ही जाना।
देति लांगरी अलप ही, जाचति सिख फेरी।
नहि बोलहि, मुख मौन धरि, जे कहहि कुफेरी ॥२॥
श्रीमुख ते मुसकाइ करि इम बाक बखाना।
लोभी दीरघ लांगरी नाहिन त्रिपताना।
गुर धन इन खायो अधिक डहिको२ मन मांही।
पिछले जनम मसंद थो भूखा बड आई ॥३॥
चौपई: जेणवहु३, दे गुरू की होइ*।
दे वाहिगुरू जी की सोइ।
साद दे महि बहुतो रहै।
जो पाहुलीआ गुर सिख अहै ॥४॥
नहीण प्रशाद देग को खाइ।
सो नहि गुर को सिज़ख कदाइ।
अबि तेसुनहु सिज़ख सभि भाई।
करि कै रहित जथा हम गाई ॥५॥
आप प्रशादि बनावहु तार।
ढिग है दीजहि -अचहु अहार४-।
सिज़ख प्रशादि छकावै सिख को।

+सौ साखी दी हुण १८वी साखी इज़थोण चज़ली है।
++पा:-बखान।
पा:-गुर।
१प्रशाद दी तकड़ाई कराओ सभ ळ (भुज़खे रहिदे) जाणके। परंतू शुध पाठ तकरारी है, तकड़ाई
लिखंा लिखारी दी अुकाई है। सौ साखी विच तकरारी पाठ है। फिर अरथ ऐअुण लगदा है-
लांगरी प्रशाद दा तकरारी है, इह गज़ल सभ ने जाण लई है, थोड़ा (खां ळ) देणदा है, जो सिख
होर मंगण तां बोलदा ही नहीण, चुज़प वट जाणदा है, जो बोलदा है तां अुलट पुलट। सौ साखी दा
पाठ है:-लांगरी प्रशाद दा तकरारी हैगा ।तकरारी = झगड़ा करन वाला॥।
२भरम गिआ है।
३छको।
*सौ साखी दा पाठ-जाओ तेग गुरू की देग वाहिगुरू जी की।
४सिज़ख दे नेड़े होके दिओ (ते आखो) प्रशाद छको।

Displaying Page 352 of 448 from Volume 15