Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 358 of 372 from Volume 13

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) ३७१

५०. ।फतेशाह ते नाहणेश दा मेलकराइआ। शेर शिकार॥
४९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति १ अगला अंसू>>५१
दोहरा: बडी प्राति अुठि करि गयो, नदचंद न्रिप पास।
समुझायहु बहु बिधि कहो, कीजै बैर बिनास ॥१॥
चौपई: फतेशाह न्रिप निकट रहायो१*।
तुझ लैबे हित मोहि पठायो।
सभि गिनती तजि हूजहि साथ२।
करहि प्रतीखन तो कहु नाथ ॥२॥
गुर दिशि ते इम बहु समुझायो।
जोण कोण करि न्रिप संग चढायो।
चढि नाहण ते मारग चाला।
साथ अनीकहि३ लीनि बिसाला ॥३॥
सगरो पंथ अुलघति आयो।
नगर पांवटे डेरा पायो।
इक दिशि फतेशाह दल परयो।
दिशि दूसरि महि आनि अुतरयो ॥४॥
तबि प्रभु को मिलिबे हित चाहो।
प्रथम बूझि आवति भा पाहो४।
पग पंकज को कीनि प्रनाम।
हरखो दरस पाइ अभिराम ॥५॥
श्री कलीधर न्रिप सनमाना।
मिटनि बिरोध प्रसंग बखाना।
सुनति भाअु के बाक बखानै।
कहो आप को हम सभि मानैण ॥६॥
जिस प्रकार हित होइ हमारा।
क्रिपा धारि सो करहु अुचारा।
सतिगुर कहोप्राति जबि होइ।
करैण हकारनि आवहु दोइ ॥७॥


१(गुरू जी ने) रज़खिआ है पास।
*पा:-टिकायो।
२भाव मेरे नाल चज़लो।
३सैना।
४पहिलां पुज़छ के पास आइआ (नाहन दा राजा)।

Displaying Page 358 of 372 from Volume 13