Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ३७४

४३. ।सुखमनी। सज़ता बलवंड॥
४२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>४४
दोहरा: रामताल ईसान दिश१, बैठे गुरू क्रिपाल।
रचनि लगे तब सुखमनी, दे सुख करति निहाल ॥१॥
चौपई: प्रथम शलोक२ गुरू पग बंदे।
कीनि मंगलाचरन बिलदे।
प्रभु सिमरन की महिमा फेर।
अशटपदी महि रची बडेर ॥२॥
नाम महातम महिद महाना।
बहु बिधि सोण सतिगुरू बखाना।
ब्रहम गानी अुर भगत विरागी।
साध संगति जिन की लिव लागी ॥३॥
कहो महातम अति तिन केरा।संतनि रिपु को३ कशट बडेरा।
निरगुन आप सरगुन भी ओही।
कलाधार जिन सगली मोही ॥४॥
तज़तं मसी४ बाक इह भाखा।
इम श्रति सार आनि सभि राखा*।
करि सुखमनी अंत महि आपू।
कहो महातम अधिक प्रतापू ॥५॥
सभि ते अूच पाइ असथान।
नित पाठक मिटि आवनि जानि।
मैण महिमा का करव बखानी।


१पूरब अुज़तर दी विचली दिशा।
२पहिले शलोक विच।
३संत दे दोखी ळ।
४भाव तूं ब्रहम है।
*सतिगुरू जी ने आप सुखमनी ळ किसे श्रती दा सार नहीण आखिआ, अुन्हां ने फुरमाया है:-
अुज़तम सलोक साध के बचन॥ अमुलीक लाल एहि रतन। जिसदे अरथ हन कि साधू बचन
(दुआरा प्रगटे हन) भाव इह कि वाहिगुरू जी दा तज़त गिआन असां ने आप वरणन कीता है।
हां तज़त गान नाल जे अुपनिखद शासत्र, जिंदावसतू, साम, कुरान अंजील दे ओह वाक जो सज़त
हन मिलनगे तां इन्हां दा इस तर्हां दा मिलना अुन्हां विचोण किसे दा सार कज़ढके लिखं दे अरथ
नहीण रज़खदा। विशेश लई वेखो इसे रास दे अंसू ४१ अंक ५० ते अंसू ४२ अंक २६ दी हेठली
टूक।

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