Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ४) ३७७
४९. ।वापस आनद पुर आए॥
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दोहरा: करो थेह कलमोट को, दई सग़ाइ बिसाल।
तिस दिन ते संगति सदा, सुखी रही सभ काल ॥१॥
चौपई: कित ते आइ किसू मग जावैण।
बाक कठोर भि नहीण अलावैण।
गुर को त्रास धरहि अुर भारी।
देखि लेहु कलमोट अुजारी* ॥२॥
राजे निज निज पुरि महि थिरे।
कुछ विरोध को ग़िकर न करे।दरब खरच होयसि बहुतेरा।
दयो तुरक अर भटनि घनेरा ॥३॥
जंग समाज अपर जे नाना।
तिन पर होयहु खरच महाना।
सनबंधी अरु सुभट संघारे।
अुजरो देश अुपज़द्रव भारे ॥४॥
सभि ही रीति भयो नुकसान।
बधो शोक अरु दुखी महान।
आप आपने पुरि थिर रहे।
गुर की बात न कैसे कहेण ॥५॥
जबि सतिगुर मारी कलमोट।
किसहु न चितवो गुर संग खोट।
इक मुकाम कीनसि तिस थान।
बैठे श्री प्रभु लाइ दिवान ॥६॥
दया सिंघ आदिक ढिग थिरे।
सकल खालसा बिनती करे।
निकसे जबि अनदपुरि छोरि।
गमने प्रिथवी पर की ओर१ ॥७॥
श्री मुख बाक एव फुरमायो२।
*पिंड जो मुड़के वज़सिआ खेड़ा कलमेट अजे है। *गुरदुआरा बी है।
१जदोण (अनदपुर छज़डके) पराई प्रिथवी वज़ल टुरे सी भाव दूसरे इलाके गए साओ।
२फुरमाइआ सी।