Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३८३

पोथी लिखहु सुफल गुरुबानी।
गुर नमिज़त दीजहि सिख+ जानी१ ॥४३॥
जे को आप दरब दे जाइ।
धरि संतोख बरतियहि पाइ२।
नहीण आप जाचहु किस पासी।
इह सेवा बड फलहि प्रकाशी३ ॥४४॥
डले बासी सिख समुदाए।
इक दिन सकल गुरू ढिग आए।
देखि दियो सांझा अुपदेश।
श्री सतिगुर करि क्रिपा विशेश ॥४५॥
दिन गुरपुरब दरस४ शंक्राति५।
दीपमाल आदिक बज़खाति।
होहि दुसहिरा मिलि इक थाइ।करिहु कराहु६ अुछाह बधाइ ॥४६॥
गुर नमिज़त करि दिहु बरताई।
शबद कीरतन करो बनाई।
सिख गरीब हुइ बसत्र बिहीन।
दीजहि तिसहि सिवाइ७* नवीन ॥४७॥
पिखहु छुधिति८ को देहु अहारो।
मिलि करि सकल एव प्रतिपारो९।
किहण सिख को कारज अरि जाइ१०।
नहिण तिस ते कोहूं बनिआइ ॥४८॥


+पा:-सुख।
१सिख जाणके।
२लैके वरतो।
३प्रकाश सहित फलेगी।
४मज़सिआ ।संस: ʸ दरश॥।
५संगराणद, महीने दा पहिला दिन।
६कड़ाह प्रशादि।
७सिवा दिओ।
*पा:-कराइ।
८भुज़खे ळ।
९पालना करो।
१०अड़ जाओ।

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