Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३८६

४१. ।श्री गुर रामदास जी दी मुज़ढली कथा। बीरबल॥
४०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>४२
दोहरा: बिशै अगनि को नीर सम, दास भीर कट देति१।
अमरदासगुर पद पदम, बंदौण नितंनेत२ ॥१॥
चौपई: संमत शत दस पंच इकासी३।
लवपुरि नगर सदा जिन वासी।
बंस लअू को सिंध मनिदू४।
जनमे रामदास गुर इंदू ॥२॥
सभि पुरि हरख अचानक लहो।
नदीअन नीर छीर है बहो५।
सने सने भे बडे क्रिपाला६।
बुधि बिलद निकंदन काला७ ॥३॥
पास बुलाइ कहो हरिदास।
काम करो घर को सुख रास।
खेलन के दिन खेल गए हैण८।
यां ते मैण बच तोहि कहे हैण ॥४॥
९सज़ति बचन! जो कहो, सु करिहूं।
मैण रावरि के सद अनुसरिहूं।
निसि बीती तबि भयो सकारे।
चनक अुदक सन मात अुबारे१० ॥५॥
भरि चणगेर सुत के कर दीनी।
बेचहु पुज़त्र लाभ दा चीनी११।
लै करि गए बजार क्रिपाला।


१दासां दी भीड़ां ळ कज़ट देण वाले।
२निताप्रती, नियम नाल ।संस: नित, नीयति॥।
३१५८१।
४(श्री रामचंद जी दे पुज़त्र) लअू दा बंस जो समुंदर वाण है (अुस विच)।
५(मानो) नदीआण दा पांी दुज़ध हो वगिआ।
६भाव श्री गुरू रामदास जी।
७विशाल बुज़धी वाले ते मौत दे दूर करन वाले।८गुजर गए हन।
९स्री रामदास जी बोले।
१०छोले पांी नाल (भिज़जे) माता ने अुबाले।
११नफे वाली (चीज) जाणके।

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