Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) ३८३

४२. ।इक सुनिआरे लड़के दा प्रसंग॥
४१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>४३
दोहरा: *इक दिन बैठे सतिगुरू, इक लरका तहि आइ।
करि बंदन सनमुख खरो, सुंदर अंग सजाइ ॥१॥
निशानी छंद: कलीधर अविलोकि कै बोले तिस काला।
किह को सुत लरके कहो, किस पुरि मै शाला१?जाति गोत है कवन तुव? सुनि तांहि बतायो।
सतिगुर सज़चे पातिशाहु! मैण शरनी आयो ॥२॥
पाहुल खंडे की लई, मोले का बेटा।
पित ने लीनी चरन की, कछु दे तुम भेटा।
बासी शहिर सर्हंद के, हम सिज़ख तुमारे।
सुनि बोले श्री सतिगुरू, अबि करहु अुचारे ॥३॥
वसदी शहिर सर्हंद है, कै भयो अुजारे।
अपराधी है हैण तुरक, बसि जिसी मझारे।
सुनि सुनियारे पहिल सिंघ२, कर जोरि बखाना।
हुइ है सकल प्रकार को, जिम गुर को भाना ॥४॥
अबि तौ मैण वसती तजो३, ढिग आइ तुमारे।
गुरू कहो घरु को जु नर, को तोहि संगारे४*?
बहुर कहो लरके तबहि, पित म्रितु५ दिन थोरे।
माता आई है इहां, तुम चरन निहोरे ॥५॥
कहि गुर रहहु हग़ूर अबि, मात भि रखि पासी।
सुनि लरके तिम ही करी, जिम प्रभू प्रकाशी।
इक खज़त्री ते लीन घर, तहि माति बसाई।
गुर हग़ूर रहिबे लगो, दिन कितिक बिताई ॥६॥
बूझो गुर इक दिन बिखै, कहु सिख हम पाही।
कंम जु है सुनिआर को, जानति कै नांही?*इथोण सौ साखी दी २५वीण साखी आरंभ होई।
१घर है।
२नाम सुनिआरे लड़के दा।
३वसदा छडके आइआ हां।
४तेरे घर दा आदमी तेरे नाल केहड़ा है?
*पा:-घर को तजहु नतु होइ संघारे।
५मर गए ळ।

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