Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन १) ३८५थी लत है। चुनांचि आइंदह के वाकात भी ही नतीजा पेश करते
हैण कि अुस ने मुलाग़मत कबूल नहीण की थी। जैसा कि राजे या
अमीरोण का बतौर इमदाद बादशाहोण के साथ लड़ाईओण मेण शामल होने
का दसतूर था वोह बी बतौर रफीक हमराह होगा। किअुणकि गुरू
गोबिंद सिंघ के इस कारे नुमायां के सिला मेण बहादर शाह ने एक
बड़ी जागीर और रासत पेश की जिसे गुरू गोबिंद सिंघ ने लेने से
इनकार कीआ, और कहा कि हमारे दादा गुरू अरजन देव के
दुशमन चंदू लाल दीवान को अुस के सपुरद कीआ था, आप को
बमूजब वअदा के सूबादारान सरहिंद और लाहौर को और राजगान
पहाड़ी वैरा को (जिन्होण ने अुस के मासूम बज़चोण को कतल कीआ था)
मेरे हवाले करो। बहादर शाह ने इकरार पूरा करने का वाअदा तो
दुहराया मगर साल की मुहलत के अरसा मेण अुस का यिह इकरार
पूरा ना हूआ। हरचंद गुरू गोबिंद सिंघ ने ईफाए अहिद की तरफबहादर शाह की तवज़जो दिलाई, लेकन वोह ईफाए अहिद मेण आखर
तज़क कासर ही रहा। और हालत मेण हरगिग़ यिह कास कबूल नहीण
करता कि गुरू गोबिंद सिंघ बहैसीअत मुलाग़म के ऐसे करारोण का
ईफा चाहता होवेगा।
लाला: कनया लाल जी आपणी तारीखे पंजाब विच लिखदे हन:-
दया सिंघ रासता मेण बादशाह की मरग की खबर लेकर गुरू जी के पास पहुंचा।
और एक कासद बहादर शाह खलफ औरंगग़ेब आलमगीर का
बतवज़सल मुनशी नद लाल खादम बखिदमत गुरू जी साहिब पहुंचा
कि शाहग़ादा आग़म वलीअहिद तखत दिहली से दिहली की तखत
नशीनी के वासते लड़ाई हो रही है, आप इमदाद देण। गुरू साहिब
ने अपने कुज़ल सिज़खोण से पांच सिज़ख मय दया सिंघ के भेज दीए।
शाहग़ादा आग़म तीर से हलाक हूआ यानी मारा गिआ और इंदुल
तहिकीकात वोह तीर फौज मेण से किसी का मालूम न हूआ। आखरकार
पाइआ गिआ कि वोह तीर जनाब गुरू साहिब का था, किअुणकि गुरू
साहिब के तीर मेण एक तोला सोना नोक बंद के पास लगाहोता था।
जब बहादर शाह तखत नशीन हूआ तोण गुरू जी को आगरा मेण
बुलाया, इसतकबाल कीआ। फिर अपने हमराह दिहली मेण ले आया
और निहाइत इज़ग़त की। ।
पंना ५५
अुमदह-तुज़-तारीख विच बहादर शाह फतह दे बाद गुरू जी ळ ऐअुण कहिदा है:-
शाहग़ादा बर ग़बाण आवुरद कि ऐ ग़ुबदहए एग़त प्रसताने हज़क शनास व अुमदह
आरानि हकीकत इकतबास, रामदास जीओ! तबीयते इनायते
तवीयत शुमा बैरीयतो आफीयत असत व अग़ दीदारे फैग़ आसारे
एशां तमाम म अग़ जान दूर शुदह, बलकि ईण सलतनत व

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