Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) ३९१
४९. ।काबल बेग बज़ध॥
४८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>५०
दोहरा: थकति भए गन सूरमे,
खड़ग प्रहारति वार।
गए तुरंगम हुस घने१,
भयो खेत बिकरार ॥१॥
तोटक छंद: तरवार हग़ारहु नग परी।
जिन रंग सुरंगति श्रों भरी२।
बहु टूटि गईलगि लोहनि पै।
कबग़े परि भिंन असोहन पै३ ॥२॥
तिम पुंज तुफंगनि टूटि गई।
गन काशट कुंद निकंद भई४।
बहु साबत कंचन काम करी५।
बिन सूरनि ते रण भूम परी ॥३॥
धर पै धर जोण किह कंध चिनी६।
किहु बाणहु कटी किहु जंघ हनी।
तुरकानि चुतीस हग़ार मरे।
गुर सूर हग़ारनि प्रान हरे ॥४॥
इक जाम चढो दिन जंग भए।
अस मार मची भट प्रान हए।
जुग जाम कछू घट रैन हुती।
लरि कै श्रम ते जनु सैन सुती ॥५॥
गन दुंदभि संग तुरंग परे।
गहि डंग बजावनहार परे।
पुतलीनि सु खेल मनो करि कै।
तर अूपरि फेरि दई धरि कै७ ॥६॥
१बहुत घबरा गए।
२जो लहू नाल लिबड़ीआण सुहणे रंग रंगीज गईआण हन।
३कबग़े (धरती) ते जुदे पए शोभ नहीण रहे सन।
४काठ दे कुंदे टुज़ट गए।
५बहुतीआण (बंदूकाण)साबत भी हन जिन्हां ते सोने दा कंम कीता है।
६धड़ ते धड़ (इं पए हन) जिवेण किसे ने कंध चिंी होई हुंदी है।
७मानोण पुतलीआण दा खेल करके हेठां अुते फेर धर दिज़तीआण हन (पुतलीआण)।