Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३९९
४२. ।इक माई दा पुज़त्र जिवाअुणा, तेईआ ताप दा प्रसंग॥
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दोहरा: इक दिन सतिगुर निसा महिण,
सिहजा पर सुपताइ१।
कूक पुकारी नारि इक,
सगरी पुरी सुनाइ ॥१॥
चौपई: गुर के खुले सुनति ही नैन।
बोले दास संग सुख दैन।
कौन अचानक कीन पुकारी?
किस ते दुख पायो इस नारी? ॥२॥
सुनि बज़लू ने तबहि बताई।
-पुज़त्र पुज़त्र- कहि को बिललाई।
कहां भयो कुछ जाइ न जाना।
नदन दुखी कि हति भा प्राना ॥३॥
सतिगुर कहो जाइ सुध आनहु।
भई दुखी किमि हमहिण बखानहु।
सुनि आइसु बज़लू चलि गयो।
म्रितक पुज़त्र तिह देखति भयो ॥४॥
सभि बिधि बूझि गुरू ढिग कहो।
त्रिय बिधवा के इक सुत रहो२।
तेईआ ताप खेद तिसु दै कै।
करो म्रितक बहु निरबल कै कै ॥५॥
सुनि गुर कहो प्राति जबि होइ।
मरो पुज़त्रतिस जीवन होइ।
अबि कहि देहु न करहि ब्रिलाप।
बंधहिण कैद जि तेईआ ताप ॥६॥
सुनि बज़लू ने जाइ हटाई।
भई भोर सुत म्रितु लै आई।
अुठि सतिगुर तिह चरन लगायो।
तूरन बालक तबहि जिवायो ॥७॥
१सुज़ते।
२इक पुज़त्र है सी।