Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ३९९

४६. ।कान्हा, पीलो, अदि भगत आए॥
४५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>४७
दोहरा: बिदा होइ लधा गयो,
पुरि लहौर की ओर।
सदन प्रवेशो जाइ करि,
मिले सिज़ख कर जोरि ॥१॥
सैया छंद: करहि परसपर नमो भाअु धरि
बूझहि कुशल बहुर गुर गाथ।
किम परचति सिज़खनि दे दरशन,
किस थल बैठति हैण जग नाथ?तुम चलि गए प्रसंग भयो किम,
कहो कहां१ तबि श्री मुख साथ।
कौने बेस२ ते मिले प्रथम गुर
हाथ जोरि जबि टेको माथ ॥२॥
लधे कहो कहां लगि कहि हौण
श्री अरजन के गुन बिसथारि।
एक जीह का बपुरी समरथ
अुचरे जाइ न, धरौण हग़ार३।
नीरध से४ गंभीर धीर धरि
सदा सुशील छबीले चारु।
करति अुधारनि नरनि हग़ारनि
इह तो सदा बरत बिवहार५ ॥३॥
गुन अनगिन, का गिनती भनि हौण,
इक गुन पिखि मैण हुइ बलिहार।
धन ते तन ते मन ते दिन प्रति
करुना कलित६ करति अुपकार।
प्रथम सुधासर सिरजो सुंदर


१कीह?
२भेख।
३हग़ार (जीभ) धारिआण बी।
४समुंद्रवत।
५सदा वरतदा है विहार (अ) इस विवहार दा तां सदा वरत ही लग रहिआ है।
६क्रिपा सहत।

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