Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) ४००

५०. ।बाबा विदा। काणशी संगत। बाज बटेर॥
४९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>५१
दोहरा: रहे कितिक दिन गुरू ढिग, ब्रिध साहिब बड धीर।
ब्रिज़ध अवसथा धरम भी१, निरबल भयो सरीर ॥१॥
चौपई: चहो चलनि चित अपनि सथानी।
तजनि सरीर दशा नियरानी।
श्री नानक गुर ते सिख होयो।
शटम हरिगोविंद गुर जोयो ॥२॥
खशट गुरनि के चलित निहारे।
रहो समीपी गान अुदारे।
जिस के कर ते निकसहि टीका२।
सो गुर बनहि सभिनि सो टीका३ ॥३॥
गुर घर महि जिस के सम आन न४।फुरहि बाक जिम निकसहि आनन५।
इक दिन बैठे बिनै बखानी।
बिनां भने सभि की तुम जानी ॥४॥
अबि मैण गमन चहोण निज नगरी।
बीत गई आवरदा६ सगरी।
क्रिपा सिंधु! इक बर अबि दीजै।
मोहि मनोरथ को सफलीजै ॥५॥
सुनि श्री हरिगोबिंद बखाना।
तुम ते नहि अदेय हम जाना।
तन मन धन जेतिक है मेरे।
क्रिपा आप की ते नित हेरे ॥६॥
मो कहु सेवक अपनि पछानहु।
जिम चाहति तिम हुकम बखानहु।
सुनति ब्रिज़ध ने किय बडिआई।


१बहुती होई।
२तिलक।
३सारिआण दा शिरोमण।
४होर नहीण।
५मुखोण जिवेण निकले।
६आयू।

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