Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ४१७

५२. ।वाहिगुरू आप स्रोवर की कार करन आया॥
५१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ५३
दोहरा: मंद मसंदन ब्रिंद को, स्राप भयो इस भाइ।
तन धरि श्री गुर दसमु बर, सगरे दए खपाइ ॥१॥
बली तुरकपति काबली, इस थल दल चलि आइ।
सर सौपान अुखेर करि, पूर दियो सभि थाइ ॥२॥
सिंघ ब्रिंद महिपति१ भए, हते जमन२ समुदाइ।
नीव पुरातन ताल की, देखि भलो सो थाइ ॥३॥
करी सुपान चिनाइ पुन, चूनो सरब लगाइ।
तिम श्री हरिमंदर करो, कंचन रतन खचाइ३ ॥४॥
सुनो कथा सर बनन की, श्री अरजन अुपकार।
कार करावति तीर थित, श्री मुख बाक अुचारि ॥५॥
अनगन नर की भीर है, चारहु दिश महि लाग।
चिनहि खनहि गुरु गुरु भनहि, भजन४ भगति बडभाग ॥६॥
चौपई: श्री लछमीपति एकंकार५*।
जग सिरजन पालन संहार।
तीन लोक सामी बडि चीन।
दीन दाल निज भगति अधीन ॥७॥
सज़च खंड महि सभि बिधि जानी।अपनि समीपनि साथ बखानी।
श्री नानक तन को मैण धारो।
नरक परन ते नरन अुबारो ॥८॥
अबि सरूप पंचम तिन केरा।
श्री अरजन हित जगत बडेरा६।
भगतु बेस महि छपहि बिसाले।
चाहति भगति पंथ कहु पाले ॥९॥


१राजे।
२मलेछ भाव तुरक ।संस: यवन॥
३जड़वाके।
४सिमरण करदे हन।
५आदि माया दे पती वाहिगुरू जी। कुदरत दे कादर जी।
*देखो इसे अंसू दे अंक ४७ ते अंसू ३० अंक ७ दी हेठली टूक।
६श्री अरजन जी (जिन्हां दे अंदर) जगत दा हित बहुत है।

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