Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) ४२७

५४. ।सतिगुरू जी दी विजै॥
५३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>५५
दोहरा: बेगलला को मारि कै,
सतिगुर पाइ प्रमोद।
फते लीनि बड जंग की,
हटे पाछली कोद ॥१॥
सैयाछंद: दियो हुकम सभि सैना के पति
हेल१ करहु तुरकनि पर धाइ।
अरहि सु कटहु मिलहि सो छोरहु,तागै शसत्र सु लेहु बचाइ।
सरब चमूं पति होति भयो हति,
बिन भूपति को लर न सकाइ।
करहु फते, अबि अंत भयो रण,
श्री नानक जी भए सहाइ ॥२॥
सुनि आइसु को गही क्रिपानैण
बाज समान गए सभि सूर।
मनहु म्रिगनि पर केहरि दौरे
मारि मारि करि भरे रूर।
जो सनमुख हुइ तजै२ तुफंगनि,
तोमर तीर तुरक भट भूर।
सभि पर परी मार* इक समसर३
रुंड मुंड करि मेले धूरि ॥३॥
कंठ कटो किह, भुजा तुंड किह,
सिर पर बजी काणहि करवार।
कुछक अरे पुन भाजि परे तहि,
किस ने ताग दीनि हज़थार।
को कर जोरति खरो निहोरित,
गुरू दुहाई काणहि अुचार४।


१हज़ला।
२चलावे।
*पा-सार = तलवार।
३इको जेही।
४कोई अुचारदा है।

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