Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ(राशि १) ४३२
एक निसा बसि तहां बिताई।
अुठे प्राति किरतन धुनि गाई।
करि शनान सुख मानि घनेरा।
करो कूच पुन आगे डेरा ॥४७॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे रासे स्री अमर जी को तीरथ प्रसंग
बरनन नाम पंच चज़तारिंसती अंसू ॥४५॥