Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) ४२९

४८. ।भाई अनद सिंघ॥
४७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>४९
दोहरा: *श्री गुर गोबिंद सिंघ जी,
देति भले अुपदेश।
नद सिंघ संग१ नद२! सुनि,
इह मग लखि दरवेश ॥१॥
चौपई: ब्रिकत होनि की चित महि तोरे।
तौ इम बनहु न कोइ बहोरे।
ग्रिहसत पंथ दूसर लखि लीजै।
जे करिबो हुइ सकल सुनीजै ॥२॥
स्री मुखवाक:
म २ ॥
नकि नथ खसम हथ किरतु धके दे ॥
जहा दांे तहां खांे नानका सचु हे+ ॥२॥
भांा मंने हुकम रजाइ++३ ॥
आपे पटी कलम आप लिखंहारा आप ॥
दूजा होइ त आखीऐ सभि घटि रहिआ बिआप ॥
चौपई: सुनि सिख सुत४! सतिगुर कहि तैसे।
ग्रिहसती होनि त होईऐ ऐसे।सघन छाव तरु बन महि अहा।
रहित कपोत कपोती तहां ॥३॥
बधि निडीय अुस बसैण सुखारे५।
बचे बची जं करि प्रितपारे।


*इह सौ साखी दी छेवीण साखी है।
१नद सिंघ नाल (बोले):-।
२हे नीणगरा!
+वार सोरठ म २।
++इह तुक इस तर्हां गुरबाणी विच नहीण आई, अुण भांा मंने सो सुखु पाए ते हुकमि
रजाई चलंा आदि आए हन।
३वाहिगुरू दा हुकम।
इह गुरबाणी नहीण, सौ साखी दे करता ळ गुरवाक खंडत याद सी सो अुसने खंडत ही लिख दिज़ता
है। शुध गुरबाणी दा वाक ऐअुण है:-
आपे पटी कलम आपि अुपरि लेखु भि तूं ॥
एको कहीऐ नानका दूजा काहे कू ॥
४हे सिज़ख दे पुज़त्र सुण।
५आल्हणा बंनके अुस विच सुख नाल रहिदे सन।

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