Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) ४३६

६०. ।जरासंध प्रसंग॥
५९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>६१
दोहरा: *भए क्रिशन अवितार प्रभु, महांबीर बलवान।
जनम भयो मथरा बिखै, बिदते गोकल थान ॥१॥
चौपई: दुशटनि महां पूतना मारी१।
तिंावरत२ की देह बिदारी।
बाल सरूप बिखै इह नासे।
ब्रधति भए गन गोप अवासे३ ॥२॥
दैत अघासुर४, धेनक५ मारा।
केसी६ को बल करि संघारा।
मथरा को अक्रर७ ले आवा।
प्रथम कुदड८ दुखंड करावा ॥३॥
मज़ल चंडूर सु मुशटक९ मारा।पुन न्रिप कंस दुशट संघारा।
जरासंध को हुतो जमाता।
जबि घन शाम कीनि खल घाता१० ॥४॥
सुता गई पित पास पुकारी।
बिधवा देखि अधिक दुखिआरी।
जरासंध कोपो बल भारी।
सकल बाहनी कीनसि तारी ॥५॥
अुतसाहित भूपत तबि चढो।
-हतौण हली हरि११- क्रोध सु बढो।


*कवी जी जरासंध दी कथा चला रहे हन, जरासंध मगध देश दा राजा होइआ है।
१महां दुशटंी पूतना मारी।
२इक दैणत जिस ळ कंस ने क्रिशन जी दे मारन वासते घज़लिआ सी ते इह वावरोला बणके क्रिशन
जी ळ अुडा लै गिआ, पर क्रिशन जी ने इस दा गला दबा के हेठां सुट दिज़ता ते एह मर गिआ।
३गवालिआण दे घर।
४अघ नामे दैणत, कंस दा सैनापति जिसळ क्रिशन ने मारिआ सी।
५नाम राखश दा।
६नाम दैणत दा।
७नाम भगत दा।
८धनुख।
९चंडूर ते मुशटक दो मज़लां दे नाम हन।
१०(अुस) दुशट दा नाश कीता।
११बलभज़द्र ते क्रिशन ळ माराण।

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