Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ४४१
५५. ।श्री गुरू अरजन देवजी दे सिज़खां दे प्रसंग॥
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दोहरा: पज़टी के दुइ चौधरी, ढिज़लोण लाल लगाह१।
करी आनि करि बंदना, श्री गुरु अरजन पाहि* ॥१॥
चौपई: श्री अंम्रितसर महिमा सुनी।
स्री मुख ते सभि महि इम भनी।
कार निकारहि होइ अुबार।
धन लाए हुइ बंस अुधारि ॥२॥
करहि सुपान चिनावनि जोइ।
अवचलि नीव तांहि की होइ।
मान सरोवर जथा बिराजा।
हरिमंदर बिच बनहि जहाजा ॥३॥
शरधा सहत करहि इशनान।
पाप मिटहि प्रापत कज़लान।
हरिमंदर महि शबद जु सुनि है।
जनम जनम के पापनि हनि है ॥४॥
अुपजै भगति, गान को पावै।
आवन जानो जगत मिटावै।
सुनि करि लगे कार को करने।
खनहि पोट२ सिर पर करि धरने ॥५॥
धन को दीन मजूर लगाए।
दिन प्रति शरधा अुर अधिकाए।
सुनि सुनि महिमा देश बिदेश।
संगति सहत मसंद विशेश ॥६॥
महिमा सिज़खन३ गुरू सुनावै।
सुनि सुनि दासन के मन भावै।
सबदन बिखै महातम कहैण।१लाल ते लगाह दो नाम हन। लगाहा पज़टी दे इलाके दा चौधरी ते चुभाल पिंड दा वासी दज़सीदा
है।
*लगाहा पहिलोण गुरू अरजन देव जी दी असीस नाल रोग तोण राग़ी होके सरवरीए तोण सिज़ख बणिआण
सी।
२पंड।
३सिज़खां ळ।