Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४६९

५०. ।पदम पछांन वाले दिज ळ बखशीश ते गोइंदवाल पुज़जंा॥
४९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>५१
दोहरा: क्रम क्रम पंथ अुलघ करि,
तिसी ग्राम को आइ।
पदम१ पछानो बिप्र जिह,
गुरता जबि नहिण पाइ२ ॥१॥
चौपई: डेरा वहिर कीन गुर तहां।
संगति संग भीर नर महां।
जैजैकार करति दरसंते।
जहिण कहिण कीरति महित करंते ॥२॥
दुरगा बिज़प्र हेरि नर भीर।
बूझति भयो एक के तीर।
किसके साथ अहैण समुदाइ?
अुतरो कौन आइ इस थाइण? ॥३॥तिस ने सकल बतावनि कीना।
अमरदास श्री गुरू प्रबीना।
श्री नानक गादी पर बैसा।
होति सफल मुख ते कहि जैसा ॥४॥
छज़त्री जाति ब्रिज़ध बय महां।
तिन के संग लोक बहु इहां।
इक तौ दरशन को सुख पावहिण।
तुरक जेजवा३ बहुरि हटावहिण ॥५॥
इतादिक सुखि लखि सभि* भांती।
रहैण संग जात्री दिन राती।
सुनि दुरगे दिजबर बीचारा।
-पिखो हुतो पद पदम अकारा+ ॥६॥
तिन के नाम रु जाति बताई।
सोई हुइ पाई बडिआई।


१चरनां विच कवल दा चिंन्ह।
२जदोण अजे गुरिआई नहीण पाई सी।
३मसूल।
*पा:-बहु।
+पा:-अगारा।

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