Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ४७४
५३. ।बाला किशना आदि सिज़खां प्रती अुपदेश॥
५२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>५४
दोहरा: झिंग्रण हुते सु जात के, बाला किशना नाम।
संसक्रिज़त बिज़दा बिखै, पंडित बड अभिराम ॥१॥
चौपई: सो जबि कथा करति नरमांही।
सुनहि ब्रिंद अुर हरखु अुपाहीण।
आछी रीति सुनावति करिहीण।
रीझहि सगरे सुजसु अुचरिहीण ॥२॥
तिनहु पिखे -सिख जाति घनेरे।
बाणछति पाइ गुरू मुख हेरे१।
सुनि अुपदेश ताग लब रोस२।
धरहि रिदै महि सति संतोश- ॥३॥
इज़तादिक गुन रिदै बिचारे।
गुर दरशन के हेतु सिधारे।
श्री अरजन के ढिग चलि आए।
नमो ठानि बैठे समुहाए ॥४॥
बोले बहुर आप सतिगुर हो।
अुपदेशो गुन सिज़खन अुर हो३।
खोशट शासत्रनि मत को जानहि४।
कथा पुरान महान बखानहि ॥५॥
श्रोता को हम देति रिझाइ।
सरब प्रसंनहि सुजसु अलाइ।
तअू हमारे मन महि शांति।
नहि अुपजति, हुइ मत अवदाति५ ॥६॥
सिज़ख आप के शांती पाइ।
अग़मत जुति लहि गुन समुदाइ।
क्रिपा करहु इह भेद बतावो।
रिदै हमारे शांति अुपावो ॥७॥
१दरशन करके।
२लालच ते गुज़सा।
३सिज़खां दे रिदे विच गुणां (दे धारन करन दा)अुपदेश करदे हो।
४(असीण) जाणदे हां।
५अुज़जल बुधि होके शांती नहीण पैदा हुंदी।