Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) ४७७

६०. ।श्री करतार पुर आए॥
५९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>६१
दोहरा: श्री सतिगुर ले बाज को, सौणपो मीर शिकार।
खान पान करि कै भले, बिसरामे सुख धारि ॥१॥
निशानी छंद: निसा बिताई सतिगुरू, करि सौच शनाना।
तिमर बिनाशि प्रकाश भा, होए सवधाना।
बसत्र शसत्र पहिरे प्रभू, हय निकटि मंगायो।
नाम जान भाई धरो, नीके अुर भायो ॥२॥
भए अरूढनि सतिगुरू, धौणसा धुंकारा।
सकल बाहनी सुनि चढी, हज़थारनि धारा।
गमने मारग मैण तबहि, अरु करति अखेरा।
नवे बाग़ को छोरते, पिखि लवा१ बटेरा ॥३॥
पंछी पिखहि सुकाब२ को, छोरहि तिह पाछे।
झपटति है करि बेग को, दिखरावति आछे।
सने सने मग महि चलति, इम करति बिलासै।
खेलति भए शिकारको, अविलोक तमाशे ॥४॥
जथा क्रम३ मग अुलघते, सलिता तट आए।
करनि बाहनी पार सभि, केवट४ समुदाए।
तरनी कीनि इकज़त्र बहु, आवहि इक जाई।
शुभटनि सहित पवंगमनि, दे पार लघाई ॥५॥
होति कुलाहल घाट पर, भरि पूर चलावैण५।
जाइ अुतारति पार तट, पुन तूरन लावैण।
इस बिधि केतिक काल महि, सभि पार लघाए।
श्री हरिगोविंद हेतु पुन, तरनी शुभ लाए ॥६॥
हुती नवीनी दीरघा, बहु रंग लगाए।
तुरकेशुर के हेतु जे, आछी बनिवाए।
अुर प्रसंन गुर को करन, तट पर थिर कारी।
हाथि जोरि केवट तबहि, इम बिनै अुचारी ॥७॥


१इक निका पंछी ।संस: लव:॥
२सुरखाब।
३हौली हौली।
४मलाह।
५पूर ळ भरके।

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