Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ४) ६०
७. ।विवाह दी तिआरी॥
६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ४ अगला अंसू>>८
दोहरा: श्री हरिगोविंद चंद तबि, बदन प्रफुज़ल बिलद।
रु लखि पित सतिगुरू को, अुठे सु देति अनद ॥१॥
तोटक छंद: जननी गन त्रीयनि बीच हुती।
जिस भाल जगी बड भाग रती१।
हित बंदन के तिस थान चले।
अुर धारि अनद बिलद भले ॥२॥
पद मंदह मंद धरे धरनी।बड लोचन ते कुटिलैण बरनी२।
जुति सुंदरता बहु शोभ धरे।
घर पौर बिखै तबि जाइ बरे ॥३॥
गन त्रीयनि देखि विशे सुखं।
हरखाइ बिलोकति चारु मुखं।
करि जोरि नमो सभि धारति हैण।
गुरु नद गुरू सु बिचारति हैण ॥४॥
सुत गंग अुमंगहि संग पिखो।
गुर बंसहिको अवितंश लखो।
पदबंदति को गहि अंक लयो।
नहि जाइ कहो जु अनद भयो ॥५॥
मुख सूंघति धारि दुलार३ घनो।
किसि रंक लही निधि ब्रिंद मनो।
सुत! जीवहु, पुंज बिघंन हनो।
इम आशिख देति सु प्रीत सनो ॥६॥
निज अंक बिठाइ सु नदन को।
सभि नारि पिखो जग बंदन को।
बहु आशिख देति वधाइनि को।
बय दीरघ, संकट होइ न को ॥७॥
मिलि को अबला४ पग कंज छुवैण।
१भागां दी मणी,।देखो गुरू ग्रंथ कोश॥ भागां दी शोभा।
२टेढीआण झिंमणीआण।
३लाड।
४इसत्री।