Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २)६१

५. ।अकबर दी चड़्हाई ते चितौड़ दा जंग॥
४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ६
दोहरा: गढ चितौड़ आकी भए,
जैमल फज़ता भ्रात।
सुनि अकबर सहि नहिण सको,
रिसो ओठ फरकाति१ ॥१॥
चौपई: सभि सूबे ढिग जे अुमराअू।
तिन दे करि नीके सिरुपाअू।
रण सामिज़गरी सकल दिवाई।
अुचित जान करि दीन बडाई ॥२॥
सैन सकेलि देश ते भारी।
साग़ी, पैदल, गज, अंबारी२।
तोप, रहिकले, तुपक, जमूरे३।
अति अुतसाह भरे+ अुर सूरे ॥३॥
तबि अकबर सभि पीर मनाए।
भेट शीरनी दे अधिकाए।
चढी कमान बीच अजमेर++।
भयो प्रसंन शाहु सम शेर ॥४॥
गढ चतौड़ दिश दीन चढाइ।
चढो** शाहु बड बंब बजाई४।
सनै सनै डेरे करि कूचं।
गढ रिपु के तबि जाइ पहूचं ॥५॥
लाइ मोरचे दीन चुफेरे।


१गुज़सा कीता (ऐसा कि) बुज़ल्ह फुरकदे हन।
२साग़ी = साग़ वाली, जिस पर साग़ लगे भाव घोड़ चड़्ही सैना, पैदल = पिआदाफौज। गज =
हाथी सैना। अंबारी = रथां वाली सैना।
।फा: अमारी = रथ, गज़डी। अंमारी = हाथी दा हौदा॥
३तोपां दे भेद हन।
तुपक = बंदूक।
+पा:-भए।
++अमजेर विच चिशती फकीराण दा टिकाणा है जिसळ मुल पातशाह मंनदे सन। अकसर पातशाह
जंग वेले एस मंदर विच कमान चड़्हाया करदे सन।
**पा:-चलो।
४रण नाद नाल।

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